सिवनीमालवा=11,04,2025=माननीय जिला एवं अपर एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती तबस्सुम खान ने 6 वर्षीय मासूम के साथ बलात्कार कर उसकी जघन्य हत्या करने वाले आरोपी के प्रकरण का फैसला मात्र 88 दिनों में कर आरोपी अजय वाडीवा को फांसी की सजा से दंडित किया। फैसले में न्यायाधीश ने अपनी संवेदना *एक ओर निर्भया* कविता लिखकर व्यक्त की। स्थानीय अधिवक्ता संघ के किसी भी अधिवक्ता ने प्रकरण में पैरवी नही की, तो विशेष लोक अभियोजक ने भी अपनी संवेदना कविता के माध्यम से व्यक्त की।
क्या थी घटना___2 जनवरी 25 की रात 10.27 बजे स्थानीय 100 डायल को सूचना मिली कि एक मासूम 6 वर्षीय मासूम गुम हो गयी है। 100 डायल के जवानो ने मासूम के घर पहुंचकर उसे तलाश किया। परिजनों ने अपना संदेह अजय आदिवासी प व्यक्त किया। जिस पर पुलिस ने गुम इंसान कायम कर अजय आदिवासी पर धारा 137(2) बी एन एस का कायम कर विवेचना में लिया। आरोपी ने पूछताछ में जुर्म स्वीकार करते हुए बताया कि वह मासूम को उठाकर झाड़ियों में ले गया था ओर बलात्कार किया था उसके द्वारा चिल्लाये जाने पर मुँह दबाकर उसकी हत्या कर डी थी। प्रकरण की प्रकृति गंभीर एवं संवेदनशील होने से पुलिस अधीक्षक नर्मदापुरम डॉ. गुरकरन सिंह एवं अनु अधि सिवनी मालवा राजू रजक तथा नगर निरीक्षक अनुपकुमार उईके द्वारा घटना स्थल का निरीक्षण किया गया एवं संदेही को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने व प्रकरण में भौतिक साक्ष्य संकलित करने के निर्देश दिये गए । वरिष्ठ अधिकारियों के दिशा निर्देश में घटना स्थल का एफएसएल अधिकारी से निरीक्षण कराकर घटना स्थल से भौतिक साक्ष्य एकत्रित किये गए । घटना के बाद नगर के लोग सड़को पर मासूम के परिजनों के साथ उतर आये थे ओर आरोपी को जल्द से जल्द फांसी देने की बात पर अड़े हुए थे।
नगर निरीक्षक ने की विवेचना___ जिला पुलिस अधीक्षक के निर्देश ओर एस डी ओ पी के मार्गदर्शन में नगर निरीक्षक अनूप कुमार उईके ने पुरे मामले की विवेचना की तथा टीम गठित कर आरोपी अजय पिता हेमराज वाडीवा 30 वर्ष निवासी खल खारदा को 12 घंटे में गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने मात्र 10 दिन में अभियोग पत्र जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश श्री मती तबस्सुम खान के न्यायालय में पेश कर दिया। जिसमे परिजन, स्वतंत्र साक्षी कुल 41 साक्षी थे। प्रकरण में पुलिस ने 96 दस्तावेज ओर 33 आर्टिकल भी प्रस्तुत किये गये थे।
अधिवक्ताओं ने नही की पैरवी___स्थानीय अधिवक्ता संघ के सभी अधिवक्ताओं ने उक्त प्रकरण को अति संवदेनशील मानते हुए प्रकरण में पैरवी नही करने की शपथ ली थी। इसलिए किसी भी अधिवक्ता ने इस प्रकरण में पैरवी नही की थी। आरोपी की ओर से विधिक सहायता से अधिवक्ता उपलब्ध कराये गये थे। अभियोजन की ओर से पैरवी विशेष लोक अभियोजन अधिकारी मनोज जाट ने पैरवी की।
मात्र दो माह 28 दिन में न्यायाधीश ने सुनाया फैसला____ जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश श्रीमती तबस्सुम खान ने प्रकरण में सुनवाई करते हुए प्रकरण के सभी साक्षीयो के कथन परीक्षण प्रति परीक्षण लिए ओर मात्र दो माह 28 दिन में सुनकर प्रकरण में अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए अजय वाडीवा हेमराज वाडिवा उम्र 30 साल निवासी ग्राम खल खारदा को सिवनी मालवा के अपराध क्रमांक- 02 /2025 धारा 137 (2) बी एन एस 103(1), 65(2), 66 बी एन एस, 5 (एम) / 6 पास्को अधिनियम में फांसी की सजा से दण्डित किया गया।
*तबस्सुम खान, विशेष न्यायाधीश ने अपने निर्णय में पीडिता के संबंध में निम्न पंक्तियाँ लेख कर अपनी संवेदना इस तरह व्यक्त की है*_____
****2 से 3 जनवरी 2025 की थी वो दरमियानी रात,
जब कोई नहीं था मेरे साथ।
इठलाती, नाचती छः साल की परी थी,
मैं अपने मम्मी-पापा की लाड़ली थी।
सुला दिया था उस रात बड़े प्यार से माँ ने मुझे घर पर,
पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा।
“वो” मौत का साया बनकर।
जब नींद से जागी, तो बहुत अकेली और डरी थी मैं,
सिसकियों ले लेकर मम्मी-पापा को याद बहुत करी थी मैं।
न जाने क्या-क्या किया मेरे साथ,
मैं चीखती थी, चिल्लाती थी, लेकिन किसी ने न सुनी मेरी आवाज।
थी गुडियों से खेलने की उम्र मेरी, पर उसने मुझे खिलोनी बना दिया।
“वो” भी तो था तीन बच्चो का पिता,
फिर मुझे क्यों किया अपनो से जुदा।
खेल खेलकर मुझे तोड़ दिया, फिर मेरा मुंह दबाकर, मरता हुआ झाडियों में छोड़ दिया।
हॉ मैं हू निर्भया, हॉ फिर एक निर्भया, एक छोटा सा प्रश्न उठा रही हूँ:-
जो नारी का अपमान करे, क्या वो मर्द हो सकता हैं क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला, वह मुझे मिल सकता हैं।****
*मृतक पीडिता के संबंध में कवि की यह पंक्तियां अभियोजन मनोज जाट, एडीपीओ/विशेष लोक अभियोजक द्वारा अंतिम बहस में प्रस्तुत की गयी कविता कुछ इस तरह थी*_____
“वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।। जिसने जीवन के केवल, पांच बसंत ही देखे थे। उसपे ये अन्याय हुआ, ये कैसे विधि के लेखे थे। एक छः साल की बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ। एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ। उस बच्ची पे जुल्म हुआ, वो कितनी रोई होगी। मेरा कलेजा फट जाता है, तो माँ कैसे सोयी होगी। जिस मासूम को देखके मन में, प्यार उमड़ के आता है। देख उसी को मन में कुछ के, हैवान उत्तर क्यों आता है। कपड़ों के कारण होते रेप, जो कहे उन्हें बतलाऊ मैं। आखिर छः साल की बच्ची को, साड़ी कैसे पहनाऊँ मैं। अगर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा। इस देश को बेटी देने में, भगवान भी जब घबराएगा।।”
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न्यायाधीश श्रीमती तबस्सुम खान ने उक्त कविता को अपने फैसले में भी लिखा है।
