वास्तविक महापुरुष की शरणागति से मिलते हैं भगवान् – सुश्री धामेश्वरी देवी

सिवनी मालवा जिला नर्मदापुरम, मोरंड गंजाल कॉलोनी (शिवराज पार्क के बगल से)े सिंचाई विभाग की तवा कॉलोनी में चल रही दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला के नवमें दिन, जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज की प्रमुख सुश्री प्रचारिका सुश्री धामेश्वरी देवी जी ने बताया कि वेदों में कहा गया है कि भगवान् की प्राप्ति वास्तविक गुरु की शरणागति से ही हो सकती है। वेदों में कहा गया है-
तब्दिध्दि प्रणिपातेन, परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः।।

अर्थात् ईश्वरीय विषय के तत्वज्ञान के लिए श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की आवश्यकता है।

रामायण कहती है- ‘ गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई’ गुरू शास्त्र वेद का पूर्ण ज्ञाता भी हो और जिसने ईश्वर साक्षात्कार भी किया हो। वेदों-शास्त्रों में तो यहॉं तक कहा गया है कि गुरू और भगवान अलग न होकर एक ही तत्व है।
भागवत में कहा गया है- ‘‘आचार्यं मां विजानयान“।
भगवान अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! तू मुझे ही गुरु मान। अतः हरि और गुरु की शरणागति उनके प्रति पूर्ण समर्पण से ही हमारा काम बनेगा।

किसी महापुरुष को पहचानने में एक बात का प्रमुख दृष्टिकोण रखना चाहिए कि किसी से सुनकर किसी को महापुरुष न मान स्वयं देखभाल कर लें, अपितु समझकर उसे स्वीकार करना चाहिए।
महापुरुष के पहिचानने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
किसी महापुरुष को पहिचानने में उसकी बहिरंग वेशभूषा को न देखना चाहिये। कोट पतलून में भी महापुरुष हो सकते हैं एवं रंगीन वस्त्रों में भी कालनेमि मिल सकते हैं। पुनः हमारे इतिहास से भी स्पष्ट है कि 90 प्रतिशत महापुरुष गृहस्थों में हुए हैं जिनके कपड़े रँगे नहीं थे।
एक बात का और दृष्टिकोण रखना चाहिये कि महापुरुष संसारी वस्तु नहीं दिया करता, यह गम्भीरतया विचारणीय है। महापुरुष क्या, भगवान् भी कर्म विधान के विपरीत किसी को संसार नहीं देते। उनके भी नियम हैं।
महापुरुष सिद्धियों का चमत्कार नहीं दिखाया करता। चमत्कार को नमस्कार करना ठीक नहीं, अपितु चमत्कारियों को दूर से नमस्कार करना ठीक है, अन्यथा अपना लक्ष्य खो बैठोगे।
महापुरुष मिथ्या आशीर्वाद नहीं देता एवं शाप भी नहीं देता। हाँ, इतना अवश्य है कि मंगलकामना सम्पूर्ण विश्व के लिये रहती है क्योंकि वह पूर्ण-काम हो चुका है।
महापुरुषों को पहिचानने का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि महापुरुष के दर्शन, सत्संगादि से ईश्वर में स्वाभाविक रूप से मन लगने लगता है। किन्तु, वह मन लगना सबका पृथक् पृथक् दर्जे का होता है। इसी प्रकार साधक का मन जितना निर्मल होगा, उतनी ही मात्रा में खिंच जायगा।
दूसरा प्रत्यक्ष लाभ यह होता है कि साधक की जो साधना-पथ की क्रियात्मक गुत्थियाँ अर्थात् संशयों को समाप्त करके सही साधना पथ पर चलाने का कार्य श्रोत्रिय-ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष ही कर सकता है। आगे प्रवचन श्रृंखला में भगवद्कृपा प्राप्त करने के लिये तीन मार्गों की गूढ़ता पर प्रकाश डाला जायेगा।
प्रवचन का अंत श्री राधा कृष्ण भगवान् की आरती के साथ हुआ। आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला का आयोजन दिनांक 21 जून तक 2025 प्रतिदिन शाम 7 से रात 9 बजे तक होगा।

नर्मदापुरम से नेहा दीपक थापक :

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